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Monday 18 December 2017

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अंजन अनुराग

अंजन अनुराग 

(ओंकार दूबे की कलम से) 



एक आश लगाए बैठे थे, अरमान छुपाये बैठे थे
दिल की ये ऐसी हालत थी , बस जान लगाए बैठे थे। 

उस पल देखा उन नजरो को, राहत की कुछ रंगीन मिली 

जैसे ही देखा पल दो पल, श्याम रंग वो और खिली।

देखा उस पतझण मौसम में, उस श्याम रंग का रंग लाना 

ऐसा छाया इस बादल पर, जैसे श्याम खुद चल आया। 

पतझड़ के उस मौसम में, क्या सावन से कुछ कम थी वो 

इस सूखे वृछ के तरुवो पर, क्या पानी से कुछ कम थी वो। 

जैसे ही पहुंची और नजर, बस ठहर गयी दो पल पलके 

उन नीले झीने पर्दो पर, दो मोती पलकों से छलके। 

सोचा जैसे ही कदम बढे , प्रतिबिम्ब बने उन पैरो के

चलते हैं  पाँव तो मेरे ये, चलते है पैर ये गैरो के। 

कदम कदम दो कदम चले , फिर सोचा चार तो चल आए  

देखा मैंने उन कदमो को , ओर मेरी कुछ बढ़ आए। 

ये ओम बस ठहरो तुम, चलने दो थोड़ा धड़कन वो 

क्या रही न अब तेरे दिल में, उम्मीदों की तड़पन वो। 

मोड़ा मैंने इन कदमो को, उस ओर झलक की द्रिष्टि  से

करके कैद उन तड़पन को, मन ही मन की पुष्टि से। 

बारी जैसे नैनो की, कहा नैन अब मुड़ते थे 

चलने वाले ये पाँव मेरे, गिरते थे और संभलते थे। 

दूर हुए जब नैनो से ओझल हुई वो द्रिष्टि से 

सोचा अपना तो था न वो, क्या और नहीं अब सृष्टि में। 

इतने में एक आवाज चली, ओर मेरी उस चन्दन से 

रुक जाओ ये पल के साथी, कहती हूँ  प्रेम के बंधन से। 

दिन को देखो, देखो दिन से, क्या इन आँखों में शीत नहीं 

होते हो दूर इन दूरो से, क्या इन आँखों में प्रीत नहीं। 

चलना है तो साथ चलो, क्या चलता छोड़ कोई छाया 

दीपक की चाह नहीं जलने की, या पतंग नहीं ये मन भाया। 

काम मेरा बस जल जाना, दीपक की लव को जलने दो 

ये नुपुर न माने धारक की, प्रेम मार्ग पर चलने दो। 

सोचा देखू रुककर उसको, इतने में पास मेरे आयी 

बादल के बीच चन्द्रमा वो, मेघ बनी मुझ पर छायी। 

तट पर तरुवो के नीचे ही, वो प्रेम भरी मधुमय आयी 

अमृत मन की उन अधरों से, प्रेम राग वो सिखलायी। 

इतने में दो सैन्य सबल, आते है उत्तर-पश्छिम से 

चली अचानक झांझा वो, लगता हो जैसे अंतिम से। 

फिर भीषण वन के तरु-कुंजो में, मिली न मुझको सुकुमारी 

फिरता था आज भी फिरता हु, ढूढ तुझे पल की प्यारी। 

अब सोचू पल दो पल बैठे, एक पल वो ऐसा आया था 

संग में है वो विरह-राग, जीवन पर जो छाया था। 

प्रेम भरे वो एक प्रहर, जीवन के मेरे साथी हैं 

क्या थोड़ा भी कुछ काम है ये जीने में ये भी काफी हैं। 


                                                                                                   ओंकार दूबे 
                                                   Give Something to the world and it will never let you down.

















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